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कणकवलीच्या बोंडूच्या एकदा मनात आले किती दिवस एकटेच ग्लासात उतरायाचे आता त्याने मॉकटेल बनायचे ठरवले सुयोग्य फळाचा शोध सुरु झाला इंटरनेट वरुन धांडोळा घेतला जाऊ लागला कोल्हापूरची मिरची, नागपूरची मोसंबी, जळगावची केळी, महाबळेश्वरची स्ट्रोबेरी यांच्याशी चव जुळवायचा प्रयत्न केला पण कधी रंग, कधी गुणधर्म तर कधी भौगोलिक परिस्थिती यात प्रयोग फसला बोंडूचे मात्र एक पक्के होते मनपसंद आणि पूरक फळ मिळाल्यावरच त्याला मॉकटेल बनायचे होते तिकटे चिपळूणच्या कैरीचे पण तसेच होते तिचेही मॉकटेलसाठी फळ शोधणे चालू होते अचानक एकदा हा बोंडू तिच्या नजरेस पडला काय वाटले तीला, तीने त्याला सांगावा धाडला बोंडूला पण कैरी खूप आवडली मॉकटेलसाठी हिच याची त्याला खात्री पटली फळांच्या झाडांना सुद्धा ही जोडी ज्याम आवडली आणि चिपळूणच्या आमराईतल्या बैठकित बात ठरली 4 नोव्हेंबरला दोघांनी मॉकटेलसाठी खूणगाठ बांधली आहे आणि 27 एप्रिलला ह्या मॉकटेलचे झोकात लॉँचिंग आहे आतापर्यंत जसे प्रेम, आशीर्वाद बोंडू आणि कैरीला दिलेत तसे ह्या कैडूला पण द्यावे अन् स्वत:ची स्वतंत्र चव जपूनही एक मस्त अफलातून चव बननेले हे मॉकटेल तुमच्या पसंतीस उतरावे |
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Wednesday, November 6, 2013
कैडू - एक अफलातून मॉकटेल
Friday, August 30, 2013
गाडी
कॉटन ग्रीन स्टेशन होते
जायचे होते पनवेलला
घाईघाईने तिकिट काढून
प्लाटफॉर्मवर मी पोचलेला
गाडीने प्लाटफॉर्म सोडलेलाच
मी धावतपळत उडी मारून गाडीत चढलो
धापा टाकत, गाडी मिळाली या खुशीत
सीटवर विसावलो
लागला जरासा डोळा
थोड्यावेळाने बघतो तो काय
अरे ह्या तर माहिम,
माझ्या वाटेवरला स्टेशन नाय
आवशीक खाव म्हणत मी खाली उतरलो
वडाळ्याला मागे येउन पनवेलच्या गाडित बसलो
चडफडलो मनात
व्यर्थ गेली धावपळ
चुकीचीच गाडी पकडली
उगाच केली इतकी धावपळ
थोड्यावेळाने मला सुचले
आता जरी चुकीची गाडी पकडली तरी
ह्या पुढे माझी सुटणारी गाडी मी चुकवणार नाही
उडी कशी मारायची ह्या भीतीने मी
प्लाटफॉर्मवर राहणार नाही
ह्या विचाराने मी झालोय स्वस्थ
थंडगार हवा खात पनवेलकडे झालोय मार्गस्थ
Sunday, August 11, 2013
कुंडली
कल बहोत रातों के बाद मै सो नही पाया
उसका खयाल दिल से निकाल नही पाया
पलके तो पुरी रात सिर्फ मिटी हुई थी
उसका चेहरा नजर से हटा न पाया
पर एक बडी समस्या है
समस्या का समाधान मेरे हाथ मे नही है
उसने मेरी तस्वीर देखी, आवाज भी सुनी है
पर अब वो कुंडली देखना चाहती है
पता नही अब क्या होगा कल
कही रास्ते की रुकावट ना बन जाये ये मंगल
दूर बैठे ग्रहोंको मैंने बिनती की है
जरुरत हो तो थोडा इधर उधर होने को बोला है
आगे जारी रहेगा ..........
उसका खयाल दिल से निकाल नही पाया
पलके तो पुरी रात सिर्फ मिटी हुई थी
उसका चेहरा नजर से हटा न पाया
पर एक बडी समस्या है
समस्या का समाधान मेरे हाथ मे नही है
उसने मेरी तस्वीर देखी, आवाज भी सुनी है
पर अब वो कुंडली देखना चाहती है
पता नही अब क्या होगा कल
कही रास्ते की रुकावट ना बन जाये ये मंगल
दूर बैठे ग्रहोंको मैंने बिनती की है
जरुरत हो तो थोडा इधर उधर होने को बोला है
आगे जारी रहेगा ..........
Wednesday, June 12, 2013
बारीष को गाली
ऑफिस से देरी से निकला, नापसंद बारीष बरस रही थी |
बारीष ने मुझे कर दिया पुरा गीला, मैने बारीष को दी गाली | |
रस्ते पे सिर्फ बारीष ही थी, ना कोई बस थी, ना कोई ऑटो खाली || |
चलते चलते मैने देखी, एक मासुम खुबसुरत लडकी अकेली | |
फिक्र मे लग रही थी, शायद वो भी दे रही थी बारीष को गाली || |
सोच मे पड गया मै, फस गयी है ये फसा रही है, मैने जाकर कर ली बात | |
सचमुच फसी थी वो, मैने घर तक उसका दे दिया साथ || |
"शुक्रिया आपका" ऐसे मुस्कुराते वो बोली | |
कुछ नही बस कलेजा चुरा ले गयी उसकी मुडती हुई कानोंकी बाली || |
अब तो बारीष मेरे दिल मे है, ना देता हु कभी बारीष को गाली | |
क्योंकी कुछ ही दिन पहले उसकी बहन बन गयी मेरी साली || |
Friday, April 12, 2013
एक दोस्त के मन कि बात मेरे शब्दोंमें
ये एक दोस्त के मन कि बात मेरे शब्दोंमें
क्या पता कोई दूर गया हुआ दोस्त फिर से जुड जाये …।
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देखो वक्त ने कैसे बदलाव कर दिया।
बातों में रहेनेवाला मै यादोंमे चला गया ॥
एक साथ चलते थे,
पता ही नही चला कब फासले बढ गये ।
साथ कम हो रहा है इसका एहसास ना रहा
नये हमसफर जो मिल गये ॥
सपने भी नही सोचा था
ऐसे बर्ताव जाने अंजाने में हो गये ।
करीब था दिल के इतने वो कि
छोटीसी बातोंने भी गहरे दर्द दे दिये ॥
अब तो इतनी दुरी लगती है कि
फिरसे जुड जाना नामुमकिन लगता है ।
खुशी तो बहोत दि है उसंने
पर दिल उस दर्द से डर जाता है ॥
पर एक बात बताऊ दोस्तों,
जब भी कभी खुशी से आखें भर आती है या फिर गम से होती है नम
उसकी याद सबसे पहले आती है
पलकोंके आंसू उसीके हाथ ढुंढते है
सुकून मिलता है दिलको, भले वक्त ने कितना भी बदलाव किया हो
पर वो दोस्ती, वो प्यारी यारी अभी भी दिल मै जवां है, जवां है ॥
क्या पता कोई दूर गया हुआ दोस्त फिर से जुड जाये …।
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देखो वक्त ने कैसे बदलाव कर दिया।
बातों में रहेनेवाला मै यादोंमे चला गया ॥
एक साथ चलते थे,
पता ही नही चला कब फासले बढ गये ।
साथ कम हो रहा है इसका एहसास ना रहा
नये हमसफर जो मिल गये ॥
सपने भी नही सोचा था
ऐसे बर्ताव जाने अंजाने में हो गये ।
करीब था दिल के इतने वो कि
छोटीसी बातोंने भी गहरे दर्द दे दिये ॥
अब तो इतनी दुरी लगती है कि
फिरसे जुड जाना नामुमकिन लगता है ।
खुशी तो बहोत दि है उसंने
पर दिल उस दर्द से डर जाता है ॥
पर एक बात बताऊ दोस्तों,
जब भी कभी खुशी से आखें भर आती है या फिर गम से होती है नम
उसकी याद सबसे पहले आती है
पलकोंके आंसू उसीके हाथ ढुंढते है
सुकून मिलता है दिलको, भले वक्त ने कितना भी बदलाव किया हो
पर वो दोस्ती, वो प्यारी यारी अभी भी दिल मै जवां है, जवां है ॥
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