बारिश का मौसम हो
सुरमयी शाम हो
बाल्कनी में आप बैठे गरम चाय पीने ही जा रहे हो
इतने मे थंडी हवाएँ लहराती हुई आती हैं
और ले चलती हैं अपने साथ यादों के सफर पर
लहराता हुआ चेहरे पर आया दुपट्टा..
साथ मे खाया हुआ भुट्टा..
वो मोगरे की महक..
और बालियों की झनक..
लहराती ज़ुल्फ़ों से गिरती प्यारी बुंदे..
वो क़समें वो वादे....
अचानक से श्रीमतीजी की आवाज़ आती है
चाय पी ली हो तो ज़रा सब्जी काट देना
फिर क्या, यादों का सफ़र वहीं ख़त्म हो जाता है
और इधर चाय भी ठंडी हो जाती है
फिर से गरम करने को कहूँ तो सवाल आता है
चाय ठंडी होने तक ध्यान किधर रहता है
ये ठंडी हवाएँ भी ना
आ जाती हैं
बे वक़्त
लहराती हुई..
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